मृतु जहाँ आस पास हो
और जिन्देगी बहुत दूर
समय के उस घाट खरी है
आज भारत्-वासी हो मजबुर
किसी की कंगन टुट रही है
तो किसी की राखी है मजबूर
किसी दुल्हन के माथे से देखो
कोई पोछ राहा है सिन्दुर
किसी माँ के आँचल में आज
मर रही है उसकी सन्तान
कोयल के उस सुरिले धून में
बज रही है प्रलय की तान
मझब की बेदी में आज
इन्सानियत चढती है बली
हरि-भरी उस हरियाली में
खून की होती है रंगोली
कहाँ है मेर वोह सुन्हरा देश
जिसकी शाहीदो ने की थी कल्पना
मैं और तुम के इस द्वन्द में
'हम्' शब्द बन गय हैं अन्जना
शाहीदों के रुह देती है
आज विवेक को चुनौती-
क्या आज का जवान दे सकेगा फिर से
अपनी जान की अहुती?
न्याय और एकता के अदर्श से क्या
सज सकेगा यह भारत वर्ष,
याँ फिर धर्म के नाम पर चलता रहेगा
यह खून की होली
और यह मिथ्या संघर्श्!
My first poetry book- Fragrant flute of fire
13 years ago
5 comments:
Good poem! What does 'अन्जना' mean?
opps! I am sorry. It should be anjana. I will correct it. Thanks for the correction. Also please let me know if there are any other mistake specials gramatical mistakes in my poem.
regards
Saswati
शाहीदों के रुह देती है
आज विवेक को चुनौती tumhari kavita ki ye pankti mujhe sabse achhi lagi.good job.in ur poem there is reflection of humanity.keep it up
dheeraj
Thanks Dheeraj for liking my poems..
regards
saswati
GooD Poem...
Amit
Post a Comment